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प्र वे॒धसे॑ क॒वये॒ वेद्या॑य॒ गिरं॑ भरे य॒शसे॑ पू॒र्व्याय॑। घृ॒तप्र॑सत्तो॒ असु॑रः सु॒शेवो॑ रा॒यो ध॒र्ता ध॒रुणो॒ वस्वो॑ अ॒ग्निः ॥१॥

English Transliteration

pra vedhase kavaye vedyāya giram bhare yaśase pūrvyāya | ghṛtaprasatto asuraḥ suśevo rāyo dhartā dharuṇo vasvo agniḥ ||

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Pad Path

प्र। वे॒धसे॑। क॒वये॑। वेद्या॑य। गिर॑म्। भ॒रे॒। य॒शसे॑। पू॒र्व्याय॑। घृ॒तऽप्र॑सत्तः। असु॑रः। सु॒ऽशेवः॑। रा॒यः। ध॒र्ता। ध॒रुणः॑। वस्वः॑। अ॒ग्निः ॥१॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:15» Mantra:1 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:7» Mantra:1 | Mandal:5» Anuvak:2» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब पाँच ऋचावाले पन्द्रहवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में विद्वान् और अग्निगुणविषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! जैसे मुझ को (घृतप्रसत्तः) जल में प्रसक्त होने (असुरः) और प्राणों में सुख देनेवाला तथा (सुशेवः) सुन्दर सुख जिसमें ऐसे (रायः) धन का (धर्त्ता) धारण करने और (वस्वः) पृथिवी आदि का (धरुणः) धारण करनेवाला (अग्निः) अग्नि धारण किया जाता है, उसके बोध के लिये (कवये) विद्वान् और (वेद्याय) जानने योग्य के लिये और (यशसे) प्रशंसित (पूर्व्याय) प्राचीनों में प्राप्त विद्यावाले (वेधसे) बुद्धिमान् के लिये (गिरम्) वाणी को (प्र, भरे) धारण करता हूँ, वैसे आप लोग भी इसको इसलिये धारण करो ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे विद्वानो ! जो अग्नि आदि पदार्थों की विद्या असाधारण अर्थात् विलक्षण है, उसको उत्तम लक्षणवाले बुद्धिमान् विद्यार्थियों के लिये ग्रहण कराइये ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विद्वदग्निगुणविषयमाह ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! यथा मया घृतप्रसत्तोऽसुरः सुशेवो रायो धर्त्ता वस्वो धरुणोऽग्निर्ध्रियते तद्बोधाय कवये वेद्याय यशसे पूर्व्याय वेधसे गिरं प्र भरे तथा यूयमप्येनमेतदर्थं धरत ॥१॥

Word-Meaning: - (प्र) (वेधसे) मेधाविने (कवये) विपश्चिते (वेद्याय) वेदितुं योग्याय (गिरम्) वाचम् (भरे) धरामि (यशसे) प्रशंसिताय (पूर्व्याय) पूर्वेषु लब्धविद्याय (घृतप्रसत्तः) घृते प्रसत्तः (असुरः) प्राणेषु सुखदाता (सुशेवः) शोभनं शेवः सुखं यस्मात् (रायः) द्रव्यस्य (धर्त्ता) (धरुणः) धारकः (वस्वः) पृथिव्यादेः (अग्निः) पावकः ॥१॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । हे विद्वांसो ! याग्न्यादिविद्यासाधारणास्ति तां शुभलक्षणान् मेधाविनो विद्यार्थिनो ग्राहयत ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात विद्वान व अग्नी यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे विद्वानांनो अग्नी इत्यादी पदार्थांची विद्या असाधारण आहे. ती उत्तम लक्षणयुक्त बुद्धिमान विद्यार्थ्यांना ग्रहण करावयास लावा. ॥ १ ॥